Jamma | बिश्नोई समाज में जम्मे का अर्थ

बिश्नोई समाज में जम्मे का क्या महत्व है तथा जम्मा क्यों लगाया जाता है इसके बारे में अभी भी बहुत से लोगों को पता नहीं है, इसलिए आज बिश्नोई समाज में जम्मे के बारे में चर्चा करेंगे।

हम यहां पर जानेंगे की जम्मा क्या होता है तथा जम्मे में क्या-क्या किया जाता है और जम्मा लगाकर गुरु जांभोजी की स्तुति किस प्रकार की जाती है।

बिश्नोई समाज में जम्मे का अर्थ

जम्मे का अर्थ है – एकत्र होना।

बिश्नोई पंथ में बिश्नोई साधुओं, गायणों एवं किसी गृहस्थ के द्वारा रात्रि में जाम्भाणी साखियों एवं गुरु जाम्भोजी से सम्बन्धित भजनों का जो गायन किया जाता है, उसे जम्मा कहते हैं । जम्मे में साखियों को ‘अस्थाया’ भी जाता है अर्थात् साखियों के भावार्थ को स्पष्ट किया: जाता है।

समाज के लोग वहां एकत्रित होकर इन साखियों एवं भजनों को श्रवण करते हैं। जम्मे की प्रथा गुरु जाम्भोजी के समय से ही प्रचलित है। किसी घर में किसी भी अच्छे कार्य के सम्पन्न होने पर या किसी बुरी स्थिति के टालने के उद्देश्य से घर में जम्मा लगाया जाता है। इसको समाज में अत्यधिक पुण्य का कार्य माना जाता है।

जम्मे में गुरु जाम्भोजी के समय से ही पांच साखियां अनिवार्य रूप से गायी जाती रही हैं। आधी रात को आटे का चौमुखा दीपक जलाया जाता है और गुरु जाम्भोजी की आरती गायी जाती है। इस आरती में कर्ममय जीवन का सन्देश है। गुरु जाम्भोजी की विचारधारा भी कर्ममय जीवन पर आधारित है। सम्भवत: इसी साम्य के कारण इस आरती को इतना महत्त्व दिया जाता है। आरती के बाद सबको प्रसाद बांटा जाता है। इसके बाद भी जाम्भाणी साखियां, भजन एवं आख्यान गाये जाते हैं।

प्रातःकाल हवन होता है जिसमें सबदवाणी के समस्त सब्दों का पाठ किया जाता है। तत्पश्चात् कलश की स्थापना करके विधिपूर्वक पाहल किया जाता है और सबको पाहळ दिया जाता है। इसके बाद पूर्णाहुति दी जाती है। इसके साथ ही जम्मे की प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है। प्रातःकाल सभी आमन्त्रित मेहमानों को भोजन कराया जाता है और जम्म के गायकों को दान-दक्षिणा देकर विदा किया जाता है।

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