Bishnoi समाज में इसलिए नीला वस्र पहनना मना

हमारे बिश्नोई समाज में एक नियम है कि नीला वस्त्र धारण नहीं करना बहुत सारे लोगों को इस नियम का सही कारण नहीं पता और वह अपने हिसाब से अलग-अलग अंदाजे लगाते रहते हैं।

लेकिन आज हम यहां पर आपको सटीक कारण बताएंगे कि यह नियम गुरु जांभोजी ने क्यों बनाया और इसके पीछे क्या कारण रहा।

हम बिश्नोई समाज के 29 नियमों को देखें तो वह नियम बहुत ही अच्छे और मानव जीवन को प्रकृति से जोड़े रखने, और प्रकृति के साथ मिलकर चलना सिखाते हैं।

हमारे 29 नियमों में एक ऐसा नियम है जिससे ज्यादातर लोग समझ नहीं पाते कि यह नियम क्यों है और किस प्रकार इस नियम को बनाया गया है, तथा इस नियम का वैज्ञानिक कारन क्या है।

बिश्नोई समाज में नीला वस्त्र उपयोग न करने के कारण

यहाँ नीला वस्त्र न उपयोग करने के मुख्य दो कारण दिए गए हैं आप इन तीन कारणों को वैज्ञानिक रूप से भी परख सकते हैं।

नीले रंग की तामसिक प्रकृति

आप सभी को पता होगा कि नीला रंग तामसी प्रकृति का रंग होता है इसके कई वैज्ञानिक कारण भी बताए गए हैं।

जैसे आप अपने कमरे में नीले रंग का बल्ब जलाते है, तो आपको रात में नींद नहीं आएगी। नीला रंग आपकी चेतना को भंग करता है।

आपने देखा होगा कि पहाड़ी क्षेत्रो में जो पहाड़ो के अंदर से सुरंगे बनाई जाती है, उनमे नीले रंग की रोशनी की जाती ताकि किसी वाहनचालक को नींद न आये और उसका ध्यान सड़क पर रहे, और दुर्घटना से बचा जा सके।

नील की खेती

आप सबको पता है कि पुराने समय में नीला रंग बनाने के लिए नील की खेती की जाती थी तथा एक बार जिस जमीन में नील की खेती की जाती थी वह जमीन दोबारा उपजाऊ नहीं रहती थी।

नील के पौधे से नशीले पदार्थ भी बनते थे तथा इसे बनाने में बहुत लंबा समय लगता था इसमें बहुत ही कष्टदायक प्रक्रिया होती थी इसी कारण गुरु जांभोजी ने नीला वस्त्र पहनने से मना किया था।

एक बार किसी जमीन पर नील की खेती होने के बाद वह जमीन दोबारा खेती लायक नहीं रहती थी इससे बहुत ज्यादा पर्यावरण प्रदूषण होता था, इसीलिए नीले रंग का त्याग करना आवश्यक था।

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