हम यहां Bishnoi Samaj ki History के बारे में Hindi में चर्चा करेंगे, और Bishnoi Samaj के इतिहास को विस्तार से जानने का प्रयास करेंगे।
आज हम बिश्नोई समाज के इतिहास के बारे में बात करेंगे जैसा कि आपको पता है की बिश्नोई समाज की स्थापना श्री गुरु जंभेश्वर भगवान ने की थी गुरु जंभेश्वर भगवान ने हर जाति से बहुत से लोगों को पाहल दिया और उन्हें 29 नियम लेकर बिश्नोई बनाया।
गुरु जांभोजी ने कहा था की जो भी इन 29 नियमों का पालन करेगा वह बिश्नोई कहलाएगा और उनके कहे अनुसार बिश्नोई समाज के लोग इन 29 नियमों का पालन करते हैं और बिश्नोई कहलाते हैं।
अगर हम फिलहाल के Bishnoi Samaj के लोगों के बारे में जाने तो बिश्नोई समाज के लोग मुख्यतः भारत के राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, और मध्य प्रदेश आदि राज्यों में रहते हैं।
>> बिश्नोई समाज के 29 नियमों को मैंने यहां पर विस्तार से बताया है। <<
Bishnoi Samaj की स्थापना
अगर हम Bishnoi Samaj की स्थापना की बात करें तो विक्रम संवत 1542 के समय गुरु जांभोजी की कीर्ति चारों तरफ फैल गई थी और बहुत दूर-दूर से लोग उनके पास सत्संग सुनने आते थे।
इसी वर्ष राजस्थान में भयंकर अकाल पड़ा इस विकट स्थिति में जांभोजी ने अकाल पीड़ितों की अन एवं धन की सहायता की। सन 1542 की कार्तिक बदी 8 को गुरु जांभोजी ने समराथल धोरे पर एक विराट यज्ञ का आयोजन किया जिसमें सभी जाति वर्ग के असंख्य लोग उपस्थित हुए थ।
तभी गुरु जंभेश्वर भगवान ने कलश स्थापन कर पाहल (अभिमंत्रित जल) तैयार किया और सभी लोगों को 29 नियमों की दीक्षा देकर पाहल दिया और उन्हें बिश्नोई बनाया।
उन सब में जो अधिकतर Bishnoi बने वह जाट से और इसी कारण उन्हें जाट बिश्नोई भी कहा जाने लगा उस समय अनेकों जातियों और वर्गों से लोग बिश्नोई बने जिनमें मुख्य रुप से जाट ही थे।
Bishnoi बनने के बाद उन सभी की गोत्र समान ही रही और बिश्नोई समाज में जितनी गोत्र है उनके बारे में भी हमने विचार से बात की है।
खेजड़ली बलिदान
जब बिश्नोई समाज के इतिहास के बारे में चर्चा की जाती है तो खेजड़ली बलिदान को कभी भी भुला नहीं जा सकता है।
गुरु जांभोजी द्वारा बताए गए 29 नियमों में एक मुख्य नियम है कि वृक्षों को नहीं काटना और उनकी देखभाल करना, उसी नियम का पालन करते हुए खेजड़ली नामक गांव में 363 लोगों ने अमृता देवी के साथ मिलकर राजा के सिपाहियों को खेजड़ली नहीं काटने दी और स्वयं का बलिदान दिया।