Bishnoi Samaj के मुख्य आठ धाम (अष्ठ धाम)

गुरु जाम्भोजी बिश्नोई पंथ के सस्थापक है, इन्हे पंथ में साक्षात् विष्णु मन जाता है और इसी रूप में इनकी पूजा की जाती है। Bishnoi Samaj के गुरु जाम्भोजी है इसी कारन इनसे जुड़े सभी स्थल बहुत महत्वपूर्ण और पूजनीय है।

भगवान जाम्भोजी ने जहा जहा भृमण किया और जहा ठहर क्र ज्ञान का उपदेश दिया उन सभी स्थानों पर आज मंदिर बने हुए है और वहां समय समय पर मेले लगते है और पुरे देश से वह शर्द्धालु आते है।

Bishnoi Samaj के अष्ठ धाम

यहाँ पर आपको bishnoi samaj के मुख्य आठ धामों के बारे में बताया गया है। इनके बारे में आपको जानकारी प्राप्त करनी चाहिए और यहाँ पर जाना भी चाहिए।

पीपासर धाम

पीपासर गुरु जाम्भोजी का अवतार स्थल है। यह मुकाम से लगभग 10 – 12 कि.मी. दक्षिण की ओर तथा नागौर से लगभग 45 किमी दूर उतर दिशा में है। गांव में जिस कुए के पास गुरु जाम्भोजी ने शब्दवाणी का प्रथम शब्द कहा था वह गांव में है और अब बंद पड़ा है।

इसी कुए के पास राव दूदाजी जी ने जाम्भोजी को चमत्कारिक ढंग से पशुओ को पानी पिलाते हुए देखा था। वर्तमान साथरी गुरु जाम्भोजी के घर की सिमा में है जिसकी देखभाल संतजन करते है।

मुकाम

यह बीकानेर जिले के नोखा तहसील में है जो नोखा से लगभग 16 किलोमीटर दूर है। यहां पर गुरु जांभोजी की पवित्र समाधि स्थित है।इसी कारण समाज में मुकाम का सर्वाधिक महत्व है।

इसके पास ही पुराना तालवा गांव है। कहा जाता है कि गुरु जांभोजी ने अपने स्वर्गवास से पूर्व समाधि के लिए खेजड़ी एवं जाल के वृक्ष को निशानी के रूप में बताया था और कहा था कि वहां 24 हाथ की खुदाई करने पर शिव जी का धूणा और त्रिशूल मिलेगा। खुदाई करने में जो दोनों त्रिशूल और धूणा मिला आज वहां जाम्भोजी की समाधी है और भव्य मंदिर बना हुआ है।

मुकाम में फाल्गुन तथा आसोज की अमावस्या को दो बड़े मेले लगते हैं, लेकिन आजकल हर अमावस्या को भारी मात्रा में श्रद्धालु मुकाम पहुंचने लगे है।

समराथल धोरा

यह बीकानेर जिले के नोखा तहसील में है। समराथल मुकाम से 2 किलोमीटर दक्षिण में है तथा पीपासर से लगभग 10 से 12 किलोमीटर उत्तर में है। बिश्नोई पंथ में समराथल का अत्यधिक महत्व है। यह स्थान गुरु जांभोजी का प्रमुख उपदेश स्थल है। यहां गुरु जांभोजी 51 वर्ष तक मानव कल्याण हेतु लोगों को ज्ञान का उपदेश दिया।

विभिन्न स्थानों पर भ्रमण करने के बाद गुरु जंभोजी यहीं आकर निवास करते थे। यहां वह स्थाई रूप से 51 वर्ष तक निवासरत रहे। संवत 1542 में इसी स्थान पर गुरु जांभोजी ने अपने अलौकिक शक्ति से अकाल पीड़ितों की सहायता की थी।

जांगलू

जांगलू गांव देशनोक से लगभग 10 – 12 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में है। यह बीकानेर जिले के नोखा तहसील में है। जांगलू गांव में गुरु जांभोजी का मंदिर है जिसमें गुरु जांभोजी का चोला एव चिम्पी रखी हुई है। कहते हैं कि यहां रखी हुई चिम्पी वही है जो सैंसा के घर खंडित हो गई थी।

मूल चिम्पी अभी भी सुरक्षित है इसलिए उसे काम में नहीं लेते हैं उसी आकार की एक दूसरी चिम्पी से श्रद्धालु अपनी मनोकामना के लिए अमावस्या को घी से भरते हैं। कहते हैं कि मोहोजी मुकाम से चोला चिम्पी और टोपी लेकर जांगलू आए थे। मुकाम के लोगों के निवेदन पर टोपी तो मोहोजी ने वापस देदी और शेष दोनों वस्तुएं जांगलू मंदिर में आज भी सुरक्षित है।

लोदीपुर

यह स्थान जिला मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश) में स्थित है। लोदीपुर, मुरादाबाद दिल्ली रेलवे लाइन पर है और मुरादाबाद में लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर है।भृमण के समय गुरु जांभोजी लोदीपुर पहुंचे थे।

लोगों में वृक्ष प्रेम की भावना जागृत करने के उद्देश्य से गुरु जांभोजी ने यहां खेजड़ी का वृक्ष लगाया, जिसे आज भी देखा जा सकता है। इसी खेजड़ी के वृक्ष के पास गुरु जांभोजी का मंदिर बना हुआ है। यहां प्रतिवर्ष चैत्र की अमावस्या को मेला लगता है।

रोटू

यह नागौर जिले के जायल तहसील में है तथा नागौर से लगभग 30 किलोमीटर पूर्वोत्तर में है। वर्तमान में यहां भव्य मंदिर बना हुआ है जिसमें एक खांडा रखा हुआ है।

रोटू के सर्वाधिक महत्व इस बात के लिए है कि यहां गुरु जांभोजी ने अक्षय तृतीया वि. सं. 1572 को जोखे भादू की बेटी उमा (नारंगी) को भात भरा था, उसी समय लोगों की प्रार्थना पर गुरु जांभोजी ने यहां खेजड़ीओं का बाग लगाया था।

वह खेजड़ीओं का भाग आज भी मौजूद है और वहां पर हजारों पक्षी विश्राम करते हैं और आसपास के खेतों से अन्न का एक दाना भी नहीं चुगते।

जाम्भोळाव

यह जोधपुर जिले के फलोदी तहसील में स्थित है। फलोदी से लगभग 15 – 20 किलोमीटर पूर्वोत्तर में एक बड़ा तालाब है जिसे गुरु जांभोजी ने बनवाया था।

जाम्भोळाव पर बने मंदिर में सफेद मकरानी के पत्थर का एक पूर्वाभिमुख सिहासन है। कहते हैं कि इसी पर बैठकर गुरु जांभोजी ने तालाब की खुदाई का काम देखा था। यहां से थोड़ी दूर पर जाम्भा नामक गांव है। यहां साधुओं की दो परंपराएं हैं- एक आगुणी जांगा तथा दूसरी आथूणी जांगा है।

यहां पर वर्ष में चेत्र की अमावस्या तथा भाद्रपद की पूर्णिमा को दो बड़े मेले लगते हैं जो संत विल्होजी ने प्राम्भ कराये थे।

लालासर

लालासर की साथरी बीकानेर जिले के नोखा तहसील में है।यह बीकानेर से लगभग 30 किलोमीटर दक्षिण पूर्व में है तथा लालासर गांव से 6 किलोमीटर तथा मुकाम से 25-30 किलोमीटर दूर जंगल में स्थित है।यहाँ गुरु जांभोजी का निर्वाण स्थल है।

बिश्नोई पंथ के संस्थापक गुरु जांभोजी ने मिगसर वदी नवमी संवत 1593 को यहां अपना भौतिक शरीर त्याग किया था। बिश्नोई पंथ में इस दिन को “चिलत नवमी” भी कहते हैं।

कहते हैं कि लालासर साथरी पर हरी कंकेड़ी के नीचे उन्होंने अपना शरीर त्यागा था। आज इस कंकेड़ी के चारों ओर पक्का चबूतरा बना हुआ है। मुकाम में लगने वाले दोनों मेलों के समय श्रद्धालु यहां कंकेड़ी के दर्शन करने के लिए भी आते हैं। यहां “चिलत नवमी” को मेला भी लगता है। अब यहां भव्य मंदिर बनाया जा रहा है।

2 thoughts on “Bishnoi Samaj के मुख्य आठ धाम (अष्ठ धाम)”

  1. Respected sir
    Sir bishnoi samaj ke bare nain jankari collect kar raha hu. Isme nujhe apki sahayata milegi.
    Cont No – 9784004633,
    8875076773

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